मेरी चित्तौड़गढ़ की यात्रा: समर्पण से सफाई की मिसाल
हाल की चित्तौड़गढ़ यात्रा ने मुझे गहरे संतोष और गर्व से भर दिया। यह यात्रा केवल एक ऐतिहासिक स्थल का दौरा करने तक सीमित नहीं थी; बल्कि, यह एक समुदाय के परिवर्तन को समर्पण और टीमवर्क के माध्यम से देखने का अनुभव था। हमारा गंतव्य था श्री सांवलिया सेठ मंदिर मंडफिया, भादसोड़ गाँव, जो चित्तौड़गढ़ से 28 किलोमीटर दूर उदयपुर मार्ग पर स्थित है। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत मूल्यवान है। ऐसा माना जाता है कि महान संत मीराबाई ने यहां पूजा की थी, जिससे इसकी धरोहर और भी समृद्ध हो गई। हर साल यहाँ लाखों भक्त आते हैं, विशेषकर जन्माष्टमी जैसे त्योहारों के दौरान, जब यहाँ भारी भीड़ उमड़ती है। समस्या बड़ी थी। मंदिर और उसके आस-पास के बाजारों में भक्तों की भारी संख्या के कारण स्वच्छता बनाए रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। स्थानीय प्रशासन और गाँव की पंचायत अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहे थे, लेकिन भीड़ के आगे उनकी क्षमता सीमित हो जाती थी। ऐसे में, एक विशेष रणनीति की आवश्यकता थी।
FINISH सोसाइटी को इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए चुना गया, और यह हमारे लिए एक बड़ा सम्मान था। हालांकि, प्रारंभ में हमारी यात्रा चुनौतियों से भरी थी। स्थानीय लोगों का सहयोग प्राप्त करना, उनकी चिंताओं का समाधान करना, और स्वच्छता के प्रति उनके दृष्टिकोण में बदलाव लाना कोई आसान कार्य नहीं था। कुछ लोगों का मानना था कि स्वच्छता उनकी जिम्मेदारी नहीं है। लेकिन इन बाधाओं के बावजूद, हम अपने मिशन पर अडिग रहे। हमारा विश्वास था कि मंदिर को स्वच्छ रखना स्वयं भगवान की सेवा का ही एक रूप है।
हमारा दृष्टिकोण सरल लेकिन प्रभावी था। हमने समुदाय को यह सिखाया कि स्वच्छता भी भक्ति का एक हिस्सा है और उन्हें कचरे को इधर-उधर फेंकने के बजाय कूड़ेदानों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही, हमने अपने सफाई कर्मचारियों की भलाई सुनिश्चित की, जैसे कि EPF और ESI जैसी सुविधाओं से उन्हें सुरक्षित और सम्मानित महसूस कराया।
सफाई टीम में एक असाधारण ऊर्जा थी। ये सफाईकर्मी केवल अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रहे थे, बल्कि इसे एक गहरी भक्ति के साथ कर रहे थे, जैसे कि उनका कार्य भगवान सांवलिया सेठ की सेवा हो।
मुझे इस यात्रा के दौरान दो नाम विशेष रूप से प्रेरित करते हैं: माया और गुड्डी। इन दोनों की कहानियाँ भले ही समान थीं, लेकिन उनके सफर ने उन्हें अद्भुत शक्ति और धैर्य प्रदान किया, जिससे वे हमारे लिए प्रेरणा स्रोत बन गईं।
माया की एक छोटी बेटी है, और गुड्डी के दो बेटे हैं, जिनकी उम्र 10 और 12 वर्ष है। दोनों महिलाओं की शादियाँ दूर के गाँवों में हुई थीं, लेकिन उनके ससुराल में आपसी समस्याओं के कारण आयदिन क्लेश होने लगी जिससे धीरे धीरे घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। मजबूर होकर, माया और गुड्डी अपने माता-पिता के घर लौट आईं। हालांकि, वे अपने परिवारों पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने FINISH सोसाइटी से जुड़ने का निर्णय लिया और सफाईकर्मी के रूप में अपना जीवनयापन शुरू किया।
चाहे तेज धूप हो या भारी बारिश, माया और गुड्डी हमेशा समय पर और अपने काम के प्रति समर्पित रहती थीं। उनकी ऊर्जा और प्रतिबद्धता अद्वितीय थी। इसका सबसे अच्छा उदाहरण 14 सितंबर 2024 को जलझूलनी एकादशी महोत्सव के दौरान देखा गया। जब भीड़ फूलों और रंगों के साथ उत्सव मना रही थी, माया, गुड्डी और उनकी टीम यह सुनिश्चित कर रही थीं कि सड़कों पर कोई गंदगी न हो।
मैंने खुद अपनी आँखों से देखा: जैसे ही जुलूस आगे बढ़ा, माया और गुड्डी ने तुरंत सड़कों की सफाई शुरू कर दी। जब लोग उसी मार्ग से वापस लौटे, तो वे यह देखकर आश्चर्यचकित थे कि सड़कें पहले से ही साफ थीं। यह उनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। वे यह समझ नहीं पा रहे थे कि इतने बड़े त्योहार और भीड़ के बावजूद सड़कें इतनी जल्दी कैसे साफ हो गईं। लेकिन मुझे पता था कि यह माया और गुड्डी के अडिग समर्पण और अथक प्रयासों का परिणाम था।
उनकी प्रतिबद्धता केवल एक नौकरी करने तक सीमित नहीं थी; यह एक सच्ची सेवा की भावना से प्रेरित थी। FINISH सोसाइटी ने केवल एक स्वच्छता अभियान नहीं शुरू किया, बल्कि माया और गुड्डी को एक नई दिशा और गरिमा प्रदान की। उन्होंने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया, बल्कि अपने कार्य में गर्व और समुदाय के प्रति एक गहरी जिम्मेदारी भी महसूस की।
मुझे उनका सफर देखने और इन प्रेरणादायक महिलाओं से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। माया और गुड्डी इस बात का जीता-जागता उदाहरण हैं कि कैसे सच्ची सेवा जीवन बदल सकती है और समुदायों को सशक्त बना सकती है।
जब मैं श्री गुलाब सिंह जी से मिला, जो मंदिर के पूर्व स्वच्छता प्रभारी हैं, तो उनकी प्रशंसा ने हमारे काम के महत्व को और अधिक स्पष्ट कर दिया। उन्होंने बताया कि इस साल होली उत्सव के दौरान मंदिर के मैदान में सैकड़ों किलो रंग बिखरा हुआ था। हमारी टीम ने पूरी रात बिना रुके काम किया, और सुबह 4 बजे, मंगला आरती से ठीक पहले, मंदिर पूरी तरह से साफ हो गया। यह हमारे टीम की मेहनत और समुदाय के सामूहिक प्रयासों का प्रमाण था।
इस यात्रा ने मुझे समर्पण और टीमवर्क की शक्ति का अहसास कराया, और यह सिखाया कि सामूहिक प्रयासों से समुदायों में कितना बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है।